वास्तविक सफलता
सफलता का कोई अंत नहीं ,हार किसी का मरण नहीं।
जो कार्य ह्रदय से न किया , वह सफलता का धरम नहीं ।।
आज सभी सफलता के पीछे भाग रहे हैं ।परंतु सफलता है क्या ? आधुनिक युग में लोग अधिकाधिक धन प्राप्ति को या उच्च पद प्राप्ति को ही सफलता मानते हैं परंतु क्या यही वास्तविक सफलता है?
ऐसा मानने के पीछे बहुत से कारण हैं और इनमें सबसे बड़ा कारण है कि बचपन से ही घर, परिवार व समाज ने यही सिखाया है कि बड़े होकर डॉक्टर बनना, कलेक्टर बनना ,उद्योगपति बनना…. आदि। कभी किसी बच्चे से नहीं पूछा जाता कि वह कहाँ और किस क्षेत्र मे सफलता प्राप्त करना चाहता है और एक समय ऐसा आता है जब वह बाकी समाज की तरह इसी सफलता को अपनी वास्तविक सफलता मान लेता है।
परंतु सफलता की इस मान्यता में बिल्कुल भी सत्यता नहीं है ।वास्तविक सफलता है -‘आत्म संतुष्टि’। जिस कार्य को करके संतुष्टि व प्रसन्नता मिले वही तो सच्ची सफलता है। धन कभी भी सफलता का पैमाना नहीं हो सकता है ।धन के पीछे भागने वाले लोग मानसिक रोगों से ग्रस्त एवं भयभीत रहते हैं। वे धन से प्रसन्नता नहीं खरीद सकते ।हमें जो अमूल्य जीवन मिला है, उसे अगर जिया ही नहीं तो आप अपने आप को कैसे सफल मान सकते हो ?
सफल एक किसान भी हो सकता है तो श्रमिक या कलाकार भी हो सकता है। इसके लिए आवश्यक है आत्म संतुष्टि और प्रसन्नता।
सफलता के प्रमुख रूप से तीन रहस्य है-
सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनना ।इसके लिए जरूरी है उसमें सत्य, अहिंसा,प्रेम, सद्भाव आदि मानवीय गुणो का होना ।
दूसरा सबसे जरूरी है कि आप अपने परिवार एवं कार्य के बीच सामंजस्य स्थापित कर पाएँ अर्थात आप सिर्फ धन के पीछे भाग रहे हैं और परिवार के लिए तो समय ही नहीं है ,ऐसा नहीं होना चाहिए ।अपने परिवार व बच्चों को समय देना उतना ही जरूरी है जितना आजीविका चलाना ।
तीसरा रहस्य है सदैव प्रसन्न रहना और यह तब संभव है जब हम छोटी से छोटी बात में खुशियाँ ढूंढें बाँटें।
हमारी सफलता खुशियों की चाबी नहीं
परंतु खुशियां सफलता की चाबी जरूर है।
सुख एवं दुख मन के संकल्प एवं विकल्प है । यह तो हमारे मन के विचारों की स्थिति है। सफलता किसी वस्तु को प्राप्त कर लेने में नहीं है बल्कि मानसिक संतुष्टि में है और मानसिक संतुष्टि की प्राप्ति ही सच्ची सफलता है।
राहें तो हैं बहुत ,बहुत है मंजिलें ।
सफलता है वहीं, जहाँ संतुष्टि मिले।।